भारत में कॉलेज की ओर से जेंडर डाइवर्सिटी को बढ़ावा देने के प्रयास और संस्थान के बावजूद सी-सूट में महिलाओं की खुराक केवल 19 प्रतिशत ही है। ये ग्लोबल एवरेज 30% से काफी कम है. हाल ही में हुई एक स्टडी में इसे लेकर स्टूडेंट वाले खुलासे हुए हैं।
अवतार एक वर्कशॉप कल्चर कंसल्टिंग फर्म ने अपनी तरफ से की गई स्टडी में पता चला है कि महिलाओं के लिए काम और निजी जीवन में संतुलन की कमी सबसे बड़ी चुनौती है। 60% प्रतिशत उत्तरदाताओं ने इसे एक महत्वपूर्ण बाधा बताया। इस अध्ययन से पता चला है कि महिलाओं को सी-सूट तक पहुंचने से रोकने के कई कारण होते हैं।
रिसर्च में पाया गया कि महिलाओं के बीच एट्रिशन रेट (नौकरी आउटलुक की दर) पर वरिष्ठ नेतृत्व स्तर 2019 में 4% था, जो 2020 में 10% हो गया। यह महामारी के कारण महिलाओं के रूझान पर पड़ने वाले प्रभाव को दर्शाता है। हालाँकि 2023 में यह दर मामूली रूप से 9% और 2024 में 8% हो गई। जो प्रगति की ओर संकेत करता है, लेकिन यह अभी भी महामारी से पहले के स्तर से ऊपर है।
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जेंडर बायस और फ़्रांसीसी की कमी बड़ी बाधाएँ
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि महिलाओं के विकास में जेंडर बायस (लैंगिक पूर्व) और प्राकृतिक तत्वों की कमी बड़ी बाधा है। 44% उत्तरदाताओं ने माना कि भर्ती और पदोन्नति में पूर्वनिर्धारित महिलाओं की प्रगति बाधित हो रही है। वहीं, 41% ने कहा कि महिलाओं के लिए पुराने लीडरशिप की कमी भी बड़ी चुनौती है।
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घटनाओं और प्रौद्योगिकी की भूमिका
अध्ययन में सुझाव दिया गया है कि डेटा और आर्टिफिशियल संस्थानों का उपयोग लैंगिक पूर्वज को कम करने और महिलाओं के नेतृत्व के लिए अधिक अवसर पैदा करने में सहायक हो सकता है। साथ ही, उत्तरदाता ने कहा कि वास्तुशास्त्र में सुधार होना चाहिए ताकि महिला नेतृत्वकर्ता बेहतर प्रदर्शन कर सकें।
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